अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे॥
ॠनियां जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्त धाम शिवपुर में पावे॥
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव…॥
तज्ञमज्ञान – पाथोधि – घटसंभवं, सर्वगं, सर्वसौभाग्यमूलं ।
O Wonderful Lord, consort of Parvati You will be most merciful. You mostly bless the poor and pious devotees. Your stunning kind is adorned With all the moon in your forehead and on your ears are earrings of snakes’ Hood.
मुण्डमाल तन क्षार लगाए ॥ वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे ।
अर्थ: हे अनंत एवं नष्ट न होने वाले अविनाशी भगवान भोलेनाथ, सब पर कृपा करने वाले, सबके घट में वास करने वाले शिव शंभू, आपकी जय हो। हे प्रभु काम, क्रोध, मोह, more info लोभ, अंहकार जैसे तमाम दुष्ट मुझे सताते रहते हैं। इन्होंनें मुझे भ्रम में डाल दिया है, जिससे मुझे शांति नहीं मिल पाती। हे स्वामी, इस विनाशकारी स्थिति से मुझे उभार लो यही उचित अवसर। अर्थात जब मैं इस समय आपकी शरण में हूं, मुझे अपनी भक्ति में लीन कर मुझे मोहमाया से मुक्ति दिलाओ, सांसारिक कष्टों से उभारों। अपने त्रिशुल से इन तमाम दुष्टों का नाश कर दो। हे भोलेनाथ, आकर मुझे इन कष्टों से मुक्ति दिलाओ।
कभी-कभी भक्ति करने को मन नहीं करता? - प्रेरक कहानी